ज़रूरी नहीं

 ज़रूरी  नहीं 


ज़रूरी नहीं कि  डांट  हर बार 
बच्चे  को  सही  राह पर  ले आए 
मुश्किलों  से लड़ते - लड़ते ही 
आदमी आगे बढ़ जाए 
आग में तप कर ही 
सोना शुद्ध  हो जाए 
ज्ञान भी कभी  - कभी 
कर देता है अंधकार 
दो और दो  चार 
नहीं होते हर बार 
तारीफ़  न करना भी होता है ग़लत 
घड़े जो बनाता है कुम्हार 
वो भी कहाँ एक से होते 
इंसान भी कहाँ 
एक दूसरे से मेल खाते 
निस्वार्थ  कहाँ लोग 
एक - दूसरे से  जुड़े रहते 
सुबह से रात तक  
सूर्य भी कहाँ एक होता 
हर प्रश्न को हाल करने का 
तरीका अलग ही होता 
इसलिये ..। ज़रूरी नहीं 
कि  डांट हर बार  बच्चे को 
सही राह पर ले आए । 


ययाति  पंड्या 




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