पड़ाव (कविता हिंदी)

पड़ाव 

रुका हूं इस पड़ाव पर 
के दम ज़रा सा भर तो लूं
जो रह गए कहीं - कहीं
राह उनकी देख लूं
न कह सके कोई के कल
मेरे लिए रुका नहीं
हूं कुछ समय यहां तो आज 
कुछ ज़रा सा सोच लूं
लक्ष्य जो भी है मेरा
उसी को फिर से देख लूं
रियाज़ इंतज़ार का
अभी तलक बहुत किया
अब राग जोश का यूं गा
उमंग को जगा - जगा
फिर से चल पड़ा हूं मैं
सफ़र पे था रुका हुआ
नया पड़ाव फिर कोई
मिलेगा राह में मुझे
कुछ घड़ी का भर के दम
चला चलूंगा राह पर
जब तलक लक्ष्य पर 
पहुंच नहीं जाता हूं मैं
बस कदम बढ़ा - बढ़ा 
राह पर चलूंगा मैं।

ययाति पंड्या 

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