रूबरू खुद से

रूबरू खुद से रूबरू खुद से होती हूँ, जब भी देखती हूँ अक्स आईने में अपना। बड़े सलीके से बताता है ये मुझको, कुछ बेहद खास है मुझमें जो किसी और में नहीं। कुछ बात है मुझमें जो किसी और में नहीं। ये कहता है मुझसे ना डरूँ, ना सहमूँ तोड़ डालूँ दुनियाँ की ज़ंजीरें, जीयूँ खुल के जीयूँ ना परवाह किसी की करूँ। अपने हौसलों को पंख देकर आगे बढ़ती चलूँ। ये कहता है मुझसे, कौन - क्या सोच रहा जाने दूँ, करूँ वो सब जो मैं करना चाहती हूँ। ये कहता है मुझसे मैं दुनियाँ से जुदा हूँ, जो ठाना है पा कर रहती हूँ। अक्स आईने में अपना जब भी देखती हूँ, रूबरू खुद से होती हूँ। ययाति पंड्या