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रूबरू खुद से

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  रूबरू खुद  से  रूबरू खुद से होती हूँ, जब भी देखती हूँ अक्स आईने में अपना। बड़े सलीके से बताता है ये मुझको, कुछ बेहद खास है मुझमें जो किसी और में नहीं।   कुछ बात है मुझमें जो किसी और में नहीं। ये कहता है मुझसे ना डरूँ, ना सहमूँ तोड़ डालूँ दुनियाँ की ज़ंजीरें, जीयूँ खुल के जीयूँ ना परवाह किसी की करूँ।   अपने हौसलों को पंख देकर आगे बढ़ती चलूँ। ये कहता है मुझसे, कौन - क्या सोच रहा जाने दूँ,   करूँ वो सब जो मैं करना चाहती हूँ। ये कहता है मुझसे मैं दुनियाँ से जुदा हूँ,   जो ठाना है पा कर रहती हूँ। अक्स आईने में अपना जब भी देखती हूँ, रूबरू खुद से होती हूँ।     ययाति पंड्या

ज़रूरी नहीं

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  ज़रूरी  नहीं  ज़रूरी नहीं कि  डांट  हर बार  बच्चे  को  सही  राह पर  ले आए  मुश्किलों  से लड़ते - लड़ते ही  आदमी आगे बढ़ जाए  आग में तप कर ही  सोना शुद्ध  हो जाए  ज्ञान भी कभी  - कभी  कर देता है अंधकार  दो और दो  चार  नहीं होते हर बार  तारीफ़  न करना भी होता है ग़लत  घड़े जो बनाता है कुम्हार  वो भी कहाँ एक से होते  इंसान भी कहाँ  एक दूसरे से मेल खाते  निस्वार्थ  कहाँ लोग  एक - दूसरे से  जुड़े रहते  सुबह से रात तक   सूर्य भी कहाँ एक होता  हर प्रश्न को हाल करने का  तरीका अलग ही होता  इसलिये ..। ज़रूरी नहीं  कि  डांट हर बार  बच्चे को  सही राह पर ले आए ।  ययाति  पंड्या 

इंतज़ार

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  इंतज़ार  "इंतज़ार करता हूँ दिन भर  कि रात हो जाए  ।  फिर तेरी याद में हम  गुम हो जाऐं " ।  ।  ययाति पंड्या  Intazaar   "Intazaar Karta Hoon Din Bhar  Ki Raat Ho Jaie, Phir Teri Yaad Mein Hum Gum Ho Jaien." Yayaatti Pandya  

GUNAHGAAR

गुनाह उसका ये   कि  वो माँगता है भीख सड़क पर।     यहाँ हम दिन-रात मांगते हैं भीख फिर भी गुनहगार नहीं।।    ययाति पंड्या  Gunaah Uska Yeh  Ki Woh Mangta Hai Bheekh Sadak Par  Yahan Hum Din-Raat Mangte Hain Bheekh  Phir Bhi Gunahgaar Nahin   Yayaatti Pandya

पड़ाव (कविता हिंदी)

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पड़ाव   रुका हूं इस पड़ाव पर  के दम ज़रा सा भर तो लूं जो रह गए कहीं - कहीं राह उनकी देख लूं न कह सके कोई के कल मेरे लिए रुका नहीं हूं कुछ समय यहां तो आज  कुछ ज़रा सा सोच लूं लक्ष्य जो भी है मेरा उसी को फिर से देख लूं रियाज़ इंतज़ार का अभी तलक बहुत किया अब राग जोश का यूं गा उमंग को जगा - जगा फिर से चल पड़ा हूं मैं सफ़र पे था रुका हुआ नया पड़ाव फिर कोई मिलेगा राह में मुझे कुछ घड़ी का भर के दम चला चलूंगा राह पर जब तलक लक्ष्य पर  पहुंच नहीं जाता हूं मैं बस कदम बढ़ा - बढ़ा  राह पर चलूंगा मैं। ययाति पंड्या