किराये का मकान
जिस्म को रूह से नवाज़ा उसने फ़रिश्ते सी माँ को पहचाना मैंने उम्र भर अनगिनत लोगों से अपनापन पाता रहा मैं बात दिल में बैठ गई गहरे यही हैं सब अपने मौत आई तो हुआ सामना सच का भेजे गए थे हम मुसाफ़िर की तरह ज़माने ने रुखसत किया ऐसे किराये का मकान खाली किया हो जैसे ययाति पंड्या